झाँक रही है भोर की स्निग्ध किरणे सफ़ेद परदों के पीछे से
आँखें मलते देख रहा हमे ये धुली किरणें अपने कुंचे से
मैं हूँ तुम्हारी बाँहों में बेलों जैसी लिपटी सी
आधी सोई आधी जागी किसी ख़्वाब में खोई सी
तुम अब भी हो निद्रा के घोर में
खोये हुए हो सपनो के किसी छोर में
तुम्हारी साँसे गरम सी धीमी सी
मेरी कानो को छूती रूहानी सी
तुम्हारा दिल लय में है धड़कता
मेरी पीठ से लग कर दिल तक है पहुँचता
तुम्हारी खुशबू मेरी सांसो को है महकाती
दिल के किसी गहराई में कोई राग है आलापति
हमारी उंगलिया एक दूसरे से है बंधे हुए
एक दूजे से न जाने किस जनम के नाते निभाते हुए
कितना सुकून है इस पल में
कितना आनंद है इस छण में
दिल करता है रोक लूँ समय को
बांध लू इन मधुर भावनाओं को
मुरझाने ना दूँ फिर इन्हे कभी
ढलने ना दूँ फिर इन्हे कभी
पर ये तो केवल मन की तरंगें हैं
ये पल भी बीत जायेगा यूँ ही
बस रह जाएगी तुम्हारे स्पर्शों की मीठी यादें
किसी किताब के पन्नो में क़ैद एक पुरानी गुलाब की आहें